तुम थे
मेरे स्वप्नों के
सोपानों की मंज़िल
मेरी
अनंत आकांक्षाओं का
समाधान
मेरी संवेदनाओं की मंथर सरिता
तुम्हारे होने से होकर,
हो जाती थी
एक उत्फुल 'पहाड़ी नदी'
और
मेरा होना हो जाता था
कोई नाचता 'निर्झर';
हिमाचली 'हवाओं' सा ही
था नेह
बस तिरने को
तुम्हारे आसपास
बनकर बादल
तुम्हारे लिए सुमधुर छाया को;
फिर भी,
तुम्हारा यूँ मुड़ जाना
मेरे दिन के सूरज को
और तपा गया
रात के अंधियारे को कर गया
और भी गहरा;
तुम मुड़े
कि मेरा ठहर गया समय
समय के उस अनचाहे मोड़ के सहारे
जिंदगी ने बदली अपनी दिशा
गंतव्य और रास्ता भी,
राह थी पर
मीठे सपनों से वीरान
और इंद्रधनुषी
आकांक्षाओं से खाली;
उन
खिलखिलाती हवाओं की चंचलता
थिरता का समीर बन
जीवन की स्वाँस का
अब संतुलन भर साधती है;
अब वही पहाड़ी नदी
बहती है किन्ही
अनजान घाटियों में
चुपचाप इतना कि
खबर नहीं किनारों को भी;
फिर.…………
तुम आये भी तो तब
जब
निर्झर इतना था शांत
कि
तुम्हारे क़दमों की आहट से
कंपा तक नहीं
हाँ,
खिलखिलाया जरूर
और फिर
हंस पड़ा अपने पर
कुछ और बूंदे गवांकर।
मेरे स्वप्नों के
सोपानों की मंज़िल
मेरी
अनंत आकांक्षाओं का
समाधान
मेरी संवेदनाओं की मंथर सरिता
तुम्हारे होने से होकर,
हो जाती थी
एक उत्फुल 'पहाड़ी नदी'
और
मेरा होना हो जाता था
कोई नाचता 'निर्झर';
हिमाचली 'हवाओं' सा ही
था नेह
बस तिरने को
तुम्हारे आसपास
बनकर बादल
तुम्हारे लिए सुमधुर छाया को;
फिर भी,
तुम्हारा यूँ मुड़ जाना
मेरे दिन के सूरज को
और तपा गया
रात के अंधियारे को कर गया
और भी गहरा;
तुम मुड़े
कि मेरा ठहर गया समय
समय के उस अनचाहे मोड़ के सहारे
जिंदगी ने बदली अपनी दिशा
गंतव्य और रास्ता भी,
राह थी पर
मीठे सपनों से वीरान
और इंद्रधनुषी
आकांक्षाओं से खाली;
उन
खिलखिलाती हवाओं की चंचलता
थिरता का समीर बन
जीवन की स्वाँस का
अब संतुलन भर साधती है;
अब वही पहाड़ी नदी
बहती है किन्ही
अनजान घाटियों में
चुपचाप इतना कि
खबर नहीं किनारों को भी;
फिर.…………
तुम आये भी तो तब
जब
निर्झर इतना था शांत
कि
तुम्हारे क़दमों की आहट से
कंपा तक नहीं
हाँ,
खिलखिलाया जरूर
और फिर
हंस पड़ा अपने पर
कुछ और बूंदे गवांकर।
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (31-05-2014) को "पीर पिघलती है" (चर्चा मंच-1629) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (31-05-2014) को "पीर पिघलती है" (चर्चा मंच-1629) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Thanx Mayank Ji..
तुम्हारा होना ही बहुत है मेरे लिए तुम हो यही बहुत है मेरे लिए ,शानदार किसी के होने का आदर भाव ,बधाई |
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